Thursday, 20 June 2013

आधारतीर्थ आश्रम जहां गढ़ रहा है अनाथों का भविष्य


हाल ही में मैं नासिक (महाराष्ट्र) गया था, जहां करीब 25 किलोमीटर दूर त्र्यम्बकेश्वर के पास एक ऐसा आश्रम है, जिसमें लगभग 250 वे बच्चे रहकर पढ़ाई-लिखाई कर रहे हैं, जिनके पिता ने कृषि ऋण न लौटा सकने के कारण आत्महत्या कर ली थी। महाराष्ट्र और उत्तरी कर्नाटक में प्रचलित वैष्णव मान्यता का वारकरी संप्रदाय इसका संचालन करता है।
2007 में स्थापित आधारतीर्थ आश्रम में 3 से 16 वर्ष के बच्चों को रखा गया है। उनके खाने-पीने और शिक्षा का संपूर्ण प्रबंध किया जाता है। किसी प्रकार की शासकीय मदद यहां नहीं ली जाती और आधारतीर्थ के कोई भी शिक्षक और कर्मचारी वेतन नहीं लेते। बच्चों को संभालने वाली चारों वे महिलाएं हैं, जिनके पति भी कृषि कर्ज न लौटाने के कारण आत्महत्या कर चुके हैं। वे भी यहां कोई वेतन नहीं लेती।
 
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, पद्मभूषण अण्णा हजारे,मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त नीलिमा मिश्र, सुपर स्टार माधुरी दीक्षित तक इस आश्रम को देख चुके हैं और इसकी उन्होंने भरपूर तारीफ की है।
आश्रम के प्रभारी मनोहर बबनराव व्यवहारे बताते हैं कि लगातार महंगी होती खेती के कारण महाराष्ट्र में भी कई किसानों ने आत्महत्या की है। अनेक बच्चे या तो अनाथ हो गए, या उनके सामने जीवन-यापन की समस्या विकट हो गई थी। इसे ध्यान में रखकर वारकरी संप्रदाय ने इसकी स्थापना की है। नासिक रिवर साइड रोटरी क्लब और कुछ उद्योग भी मदद करते हैं। वर्धा, अमरावती, गढ़चिरोली, बीड, जलगांव, धुले, ठाणे व नांदेड़ के अलावा नासिक जिले के विभिन्न हिस्सों से आए हुए बच्चों को यहां पनाह मिली है। इसका पूरा खर्च संप्रदाय के लोग मिलकर उठाते हैं। समाज से भी इस कार्य को मदद मिलती है।
पहले यहां सिर्फ आत्महत्या कर चुके किसानों के बच्चों को ही रखा जाता था, परंतु अब उन बच्चों को भी यहां रखा जाता है, जिनके अभिभावक बिजली गिरने, सांप काटने से या दुर्घटनाओं के शिकार होकर मारे गए हैं।
बच्चों की मानसिकता को समझना और उन्हें नए परिवेश में ढालते हुए उनका भविष्य बनाना आधारतीर्थ के संचालकों की प्रमुख चुनौती है।

इसका आरंभ 22 बच्चों से हुआ था। जब तक स्कूल स्थापित नहीं हुआ था। पहले स्कूल नहीं था, लेकिन जैसे-जैसे बच्चों की संख्या बढ़ती गई, खुद का स्कूल होना जरूरी हो गया।

   सर्वांगीण विकास की सार्थक कोशिश

महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों से आए ये बच्चे नैतिक शिक्षा के साथ अपना जीवन सुधारने में लगे हैं। 
Jana Krishna, Durgesh, Megha, Pooja & Lalit



यवतमार्ग की एकलगा गांव से आई कक्षा छठवीं की जना कृष्णा चौधरी बड़ी होकर पुलिस अधिकारी बनना चाहती है। 
ठाणे जिले के मोखाड़ा विकासखंड की मेघा रमेश भोई शिक्षिका बनना चाहती है।
धुले जिले के वासखेड़ी (साबुरी) का दुर्गेश रावसाहेब कुवर सिविल इंजीनियर बनना चाहता है।
बुलढाणा के गोधड़ी गांव की 9 वर्षीय पूजा सुरेश सपकाल भी बड़ी होकर शिक्षिका बनना चाहती है, ताकि अपने जैसे बच्चों को अच्छे नागरिक बना सके।
तीसरी कक्षा के ललित अनिल भदाणे डॉक्टर बनना चाहता है।

7 सौ वर्ष पुराना है वारकरी संप्रदाय


वारकरी संप्रदाय तेरहवीं शताब्दी में स्थापित हुआ था, जिसने संत ज्ञानेश्वर, नामदेव, संत तुकाराम, नरहरि सोनार, चोखामेला, मुक्ताबाई, सेना न्हावी, भानुदास जैसे प्रसिद्ध संत दिए हैं। भारतीय संत कवियों की परंपरा में ये उल्लेखनीय नाम हैं। हर वर्ष आषाढ़ी एकादशी के दिन सोलापुर जिले के पंढरपुर और पुणे के पास आलंदी में निकलने वाली पालकी में लाखों वारकरी शामिल होते हैं।
वारकरी संप्रदाय अपनी स्वतंत्र संगीत परंपरा के लिए भी जाना जाता है। वारकरी संतों द्वारा लिखे गए भजनों को अभंग कहते हैं। ढोलक, मंजीरा और एकतारे से गाए जाने वाले वारकारी भजन अत्यंत  कर्णप्रिय होते हैं। मराठी में वारकरी का अर्थ 'तीर्थयात्री' होता है।
वारकरी दर्शन के अनुसार मनुष्य का जीवन एक तीर्थयात्रा है। महाराष्ट्र के जनजीवन पर वारकारी साहित्य और संगीत का काफी असर रहा है। विठोबा या विट्ठल को वे कृष्ण का अवतार मानने  हैं। वारकरी अपनी कर्तव्यपरायणता, सादगी, नैतिकतापूर्ण आचरण, पूरी तरह शाकाहार तथा नशे से दूर जीवन बिताते हैं।

आधारतीर्थ आश्रम में संपर्क करने के लिए
फोन नम्बर  +91 9420464553 / +91 9767816481

ईमेल- adhartirth@gmail.com
वेबसाइट  www.adhartirth.com

1 comment: