Monday 17 June 2013

काष्ठ पर रची बच्चन की मधुशाला

चित्रपटी पर नाच रही है, एक मनोहर मधुशाला

काष्ठ पर रची बच्चन की मधुशाला



केंद्र के दरवाजे के निकट ही रखे लकड़ी के फ्रेम में गढ़ीं उनकी निम्नलिखित दो रुबाइयां (क्रमांक 16 और 17) वहां आने वालों का बरबस आकर्षण का केंद्र बन जाती हैं। ये रुबाइयां हैं-
वादक बन मधु का विक्रेता
लाया सुर- सुमधुर- हाला,
रागिनियां बन साकी आई
भरकर तारों का प्याला,
विक्रेता के संकेतों पर
दौड़ लयों, आलापों में,
पान कराती श्रोतागण को
झंकृत वीणा मधुशाला।

चित्रकार बन साकी आता
लेकर तूली का प्याला,
जिसमें भरकर पान कराता
वह बहु रस- रंगी हाला,
 मन के चित्र जिसे पी- पीकर
रंग- बिरंग हो जाते,
चित्रपटी पर नाच रही है
एक मनोहर मधुशाला।

दीपक उइके ने न सिर्फ ये दो रुबाइयां गढ़ीं हैं, प्रसिद्ध कवि के हूबहू हस्ताक्षर भी उकेरे हैं।

छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड की ओर से संचालित नारायणपुर के प्रसिद्ध बांस शिल्प परियोजना में वैसे तो आदिवासी लोगों को बांस की विभिन्न वस्तुएं बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें यह भी सिखाया जाता है कि कौन-सी वस्तुएं बनाई जाएं, जिनकी बाजार में अच्छी मांग है। प्रशिक्षण और बाजार के समीकरण को समझने के बीच वहां काम सीख रहे आदिवासी लोगों के मन में बैठा कलाकार अकसर जाग उठता है। इसी प्रशिक्षण केंद्र से पारंगत हुए कलाकार दीपक उइके ने हरिवंश राय बच्चन की प्रसिद्ध रचना 'मधुशाला' को लकड़ी से शब्द गढ़कर उकेरा है।

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