Tuesday 18 June 2013

अब भी आबाद हैं साप्ताहिक हाट

 मॉल और सुपर मार्केट तीसरी दुनिया की नई सच्चाई है। देश के ज्यादातर बढ़ते शहरों में सुपर मार्केट और महानगरों में मॉल व बिग बाजार खड़े हो रहे हैं।
एक और दुनिया है, इसी तीसरी दुनिया में। शहरों की सीमाओं से बाहर ग्रामीण और आदिवासी लोगों की बसाई, उनकी अपनी दुनिया। जरुरतें अत्यंत सीमित हैं, खरीद की क्षमता भी उन्हें कम पर गुजारा करना सीखा देती है। यहीं आबाद हैं उनके छोटे-छोटे बाजार और हफ्ते में एक बार भरने वाले हाट। अनाज, साग-भाजी, साज-श्रृंगार और छोटी-मोटी खाने की चीजें, बिस्कुट आदि उन्हें यहां मिल जाते हैं।
न तो यहां चमचमाते फर्श हैं, न खूबसूरत सेल्सगर्ल्स और काउंटर पर स्मार्ट क्लर्क, लेकिन इन बाजारों का सामाजिक महत्व है। एक बाजार अनेक गांवों के लोगों को जोड़ता है। खरीद-फरोख्त के बहाने लोगों का मिलना-जुलना भी हो जाता है।
छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल बस्तर में स्थित नारायणपुर से लगभग 15 किलोमीटर दूर के गांव बिंजली का ऐसा ही हाट देखने को मिला और एक बार फिर अपने उन लोगों के जीवन का एक पक्ष दिख पड़ा, जो विकास की चकाचौंध से दूर बड़ा ही सादा जीवन गुजार रहे हैं। छोटी-छोटी जरूरतों का पूरा हो जाना उनके लिए खुशियां लेकर आता है, और यह खुशी बंटती है, ऐसे ही हाट और बाजारों में।


1 comment:

  1. ऐसा ही हाट (साप्ताहिक बाजार) बंजारी धाम और सेमरिया में देखा है, यहां गांव के लोग बाजार करने आते हैं और अपनी जरूरत का सामान खरीदते हैं।

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