Wednesday 19 June 2013

कुटुमसर गुफाएं: मेरा अद्भुत अनुभव

Kutumsar Enterence
  हाल ही में मुझे जगदलपुर (भारत के प्रमुख आदिवासी क्षेत्र बस्तर में स्थित) से 40 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित विश्वप्रसिद्ध कुटुमसर गुफाएं देखने का अनुभव मिला। मेरी मौसेरी बहन सुनीता मेंढेकर तिजारे भी मेरे साथ थी। जमीन से करीब 72 फुट नीचे ये गुफाएं करीब 330 मीटर तक फैली हुई हैं। इसके अनेक हिस्सों में पानी रहता है और कुछ ही कदम दूर तक सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती, जिसके कारण यहां आने वाला व्यक्ति पूरी तरह दृष्टिहीन हो जाता है। इसमें मिलने वाली अंधी मछलियों के कारण ये गुफाएं अद्भुत हैं। चूंकि लाखों वर्षों से पूरी तरह अंधेरे में रहने के कारण इन मछलियों की आंखों का इस्तेमाल खत्म हो गया है, इसलिए उनकी आंखों पर एक पतली सी झिल्ली चढ़ चुकी है और वे पूरी तरह अंधी हो गई हैं। इन गुफाओं को पहली बार बिलासपुर के प्रोफेसर शंकर तिवारी ने 1958 में ढूंढ़ निकाला था, जब न तो फोटोग्राफी की सुविधाएं इतनी उन्नत थीं और न ही अन्य वैज्ञानिक उपकरण पर्याप्त संवेदनशील थे। घने जंगलों में स्थित इन गुफाओं में वे स्थानीय आदिवासी लोगों की मदद से और सामान्य टॉर्च, चाकू, कुछ फुट लंबी रस्सी और पानी लेकर दाखिल हुए थे। जबलपुर के एक कॉलेज में कार्यरत प्रोफेसर तिवारी ने यह अभियान गर्मी की छुट्टियों में किया था। फ्रांस, स्पेन और अमेरिका में इसी तरह की गुफाएं मिलने के बाद भूगर्भशास्त्रियों और वैज्ञानिकों में कुटुमसर गुफाओं के प्रति उत्सुकता बढ़ी थी। फ्रांस और स्पेन की गुफाओं में रंगीन भित्तिचित्र भी मिले हैं। मैक्सिकों की ऐसी गुफाएं 1000 मीटर लंबी हैं, जबकि अमेरिकी गुफाएं तो 30 मील तक फैली बताई जाती हैं।

Blind Fish 
 
पहली बार इन गुफाओं का उल्लेख छत्तीसगढ़ फ्यूडेटरी स्टेट गजट में 1909 में मिलता है। 1933 में बस्तर और ओडिशा के भौगोलिक नक्शे में इन गुफाओं को स्थान मिला था। उनके अध्ययन के बाद शंकर तिवारी ने काफी कठिनाईयों के बाद इन गुफाओं के बारे में जानकारी पाई थी। उन्होंने अपने अनुभव और शोध प्रक्रिया के बारे में विस्तार से लिखा भी है। भारत में अंधी मछलियों को ढूंढ़ने का श्रेय शंकर तिवारी को ही जाता है। इसके अलावा उन्होंने एक और नई जीव प्रजाति को इन्हीं गुफाओं में पाया था। यह दिखता तो मछली जैसा है, परंतु उसकी 15-25 सेंटीमीटर लंबी मूंछें होती हैं, जो उसका एंटीना है। इन्हीं की मदद से वह टटोलकर अपने लक्ष्य तक पहुंचता है। इस जंतु का नाम प्रोफेसर तिवारी के नाम पर रखकर उनका योग्य सम्मान किया गया- कैम्पिओला शंकराई।


 
गुफाओं के भीतर प्रकृति का विलक्षण और रहस्यमय रूप दिखता है। यहां पूरी तरह अंधेरा है, पानी में भीगे हुए पत्थर हैं, जमा हुआ या बहता हुआ जल है और एक विशिष्ट तरह के वातावरण ने गुफा के भीतर अनेक तरह के आकार और चेहरे प्रदान किए हैं। कैल्शियम, स्टेलेक्टाईट, स्टेलेग्माईट आदि के पत्थरों ने अंधेरे में चमत्कार पैदा किए हैं, प्रकाश पड़ते ही वे उजागर होते हैं।

 
 गुफाएं अनेक स्थानों पर अत्यंत संकरी, उबड़-खाबड़, उमसभरी तथा ऑक्सीजन की कमी वाली हैं। सीमित बैटरी पर चलने वाले टॉर्च की कृपा पर आप निर्भर रहते हैं। अगर गहन अंधकार में आप खो गए, तो अपने आप वापस आना लगभग असंभव है।मित्रो, फिर भी इसे अवश्य देखना चाहिए!


चूंकि इसका प्रवेश और वापसी का एक ही मुंह है, गुफा की लंबाई दुगुनी हो जाती है। ये गुफाएं दमघोंटू हैं, इसलिए बीपी, मधुमेह और हृदय रोग से पीडि़त लोगों को यहां जाने की सलाह नहीं दी जाती।
 शंकर तिवारी को सलाम, जिन्होंने कुटुमसर गुफाओं के रहस्य को उजागर किया; उनकी जिज्ञासा और जज्बें को सलाम!





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